गुरुवार, 27 अगस्त 2020

आओ कहें कहानी

 कहानी की रचना-प्रक्रिया


कहानी की बात आते ही हमें बचपन की बात सबसे पहले याद आती है। ऐसा कौन होगा जिसे कहानी सुनना पसंद ना हो। नानी-दादी के द्वारा सुनाई गई कहानी तो बच्चों के लिए यादगार ही हुआ करती है।

बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी कहानी सुनने और सुनाने में रूचि होती है। क्या आप जानते हैं कि कहानी सुनने और सुनाने की यह प्रथा बहुत पहले से चली आ रही है? अतः हम कह सकते हैं कि कहानी कहने का इतिहास बहुत पुराना है।


लेकिन जब हम कहानी-लेखन की बात करते हैं, तो हम पाते हैं कि कहानी लिखना बहुत बाद में आरंभ हुआ। आरंभिक दौर में कहानी का उद्देश्य शिक्षा देना, व्यवहार की बात बताना, धर्म का प्रचार करना तथा मनोरंजन करना आदि रहा है। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ कहानी लेखन के प्रारूप, विषय तथा शिल्प में बहुत से बदलाव हुए हैं।

जब हम कहानी-लेखन की प्रक्रिया पर बात करते हैं तो हम देखते हैं कि किसी कहानी को लिखने के लिए हमें किन बातों का ध्यान रखना सबसे आवश्यक है। हमें यह भी ध्यान रखना होता है कि एक कहानी में वह कौन से तत्त्व होते हैं जो उसे रोचक एवं पठनीय बनाते हैं।


कहानी लेखन के क्रम में सबसे प्रमुख तत्व जो हम पाते हैं, वह है- कहानी का 'कहानीपन'। कहानी का संबंध पढ़ने से अधिक कहने से है। जब से हमने कहानी सुनने और कहने की बजाए लिखने और पढ़ने लगे, तब से कहानी में इस 'कहानीपन' का ह्रास हुआ है। अब कहानी लेखक के सामने यह बड़ी चुनौती है कि कैसे वह इस 'कहानीपन' को अपनी कहानी में बचाए और बनाए रखें।


कहानी-लेखन में दूसरा जो प्रमुख तत्त्व है, वह है- कहानी का उद्देश्य। कहानी-लेखन आरंभ करने से पहले लेखक के सामने कहानी लिखने के लिए एक निश्चित लक्ष्य होना बहुत आवश्यक है अन्यथा कहानी लक्ष्यहीन हो जाएगी तथा उबाऊ बन जाएगी।


कहानी-लेखन में तीसरा जो प्रमुख तत्त्व उभरकर आता है, वह है- कथानक अथवा कथावस्तु। किसी भी कहानी की शुरुआत करने से पहले लेखक के पास उस कहानी की एक कथावस्तु स्पष्ट होनी चाहिए। लेखक के सामने यह बिल्कुल साफ होना चाहिए कि वह जो कहानी लिखने जा रहा है उसमें उसे कहना क्या है। कथावस्तु का विस्तार ही कहानी का विकास है। लेखक अपनी सुविधा के लिए कथावस्तु को आरंभ, मध्य और अंत - इन तीन हिस्सों में बांट सकता है। 


कथावस्तु में द्वंद्व के तत्वों का होना भी बहुत आवश्यक है। इससे कथावस्तु का विकास होता है तथा पूरी कहानी में एक रोचकता बनी रहती है।


कथानक अथवा कथावस्तु को निश्चित कर लेने के बाद लेखक को उस कहानी के लिए देशकाल, स्थान और परिवेश का चुनाव करना भी आवश्यक होता है। कथावस्तु किस काल, परिवेश और स्थान से संबंधित है, यह लेखक के सामने स्पष्ट होना चाहिए।


पात्र या चरित्र कहानी-लेखन का एक और महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। लेखक को उसकी कहानी की कथावस्तु के आधार पर अलग-अलग पात्रों का चुनाव करना होता है, जिसके द्वारा कहानी का विकास किया जाता है। कहानी में पात्रों का चुनाव करते समय लेखक को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। कहानी के पात्र कथावस्तु, उद्देश्य, परिस्थिति एवं समय के अनुकूल होने चाहिए। आपने देखा और सुना होगा कि कई कहानियों के पात्र इतने सफल और लोकप्रिय हो जाते हैं कि बहुत समय तक पाठकों के मन में अपनी जगह बना लिया करते हैं। प्रेमचंद की कहानियों की बात करें तो 'ईदगाह' कहानी का 'हामिद', 'पूस की रात' कहानी का 'हल्कू', 'कफन' कहानी का 'धीसू' और 'माधव', 'पंच परमेश्वर' कहानी के 'अलगू' और 'जुम्मन' ऐसे ही अमर पात्र हैं।


कहानी-लेखन का एक और प्रमुख तत्त्व है- संवाद। कहानी में संवाद का बहुत महत्त्व है। कहानी-लेखन के क्रम में उचित समय और स्थान पर पात्रों के बीच संवाद स्थापित कराया जाना बहुत आवश्यक है। लेखक को यह ध्यान रखना चाहिए कि कहानी महज वर्णन मात्र बनकर न रह जाए। संवाद समय, परिस्थिति और पात्र के अनुकूल होना चाहिए। संवाद लिखते समय अनुकूल भाषा का बहुत सावधानी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।


कहानी लिखने की पूरी प्रक्रिया में लेखक को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उसकी कहानी में एक गतिशीलता हो, भाषा में प्रवाह हो, जिससे पाठक को बांधकर रख सकने की क्षमता कहानी में उत्पन्न हो। लेखक को भाषा के बनावटीपन तथा क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। इससे कहानी में दुरूहता आ जाती है तथा उसकी पठनीयता समाप्त हो जाती है।




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