मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

अलंकार

 



"अलंकरोति इति अलंकार:।"

अथवा

"अलंक्रियतेsनेन इति अलंकार:।"


अर्थात जो अलंकृत करे, शोभा बढ़ाए, उसे अलंकार कहा जाता है।

जिस तत्व से काव्य की शोभा होती है, उसे अलंकार कहते हैं।

संस्कृत काव्यशास्त्र में अलंकार सिद्धांत का प्रवर्तक भामह को माना जाता है। इसी परंपरा में दंडी और उद्भट भी आते हैं।


अलंकार तीन प्रकार के होते हैं-

क) शब्दालंकार 

ख) अर्थालंकार 

ग) उभयालंकार


शब्दालंकार


जब शब्दों के विशेष प्रयोग के द्वारा काव्य में चमत्कार उत्पन्न किया जाए अथवा काव्य की शोभा बढ़ाई जाए, वहां शब्दालंकार का प्रयोग होता है।


(१) अनुप्रास अलंकार


एक या एक से अधिक वर्णों की क्रमानुसार आवृत्ति को अनुप्रास अलंकार कहा जाता है।


चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में।


मुदित महीपति मंदिर आए, सेवक सचिव सुमंत बुलाए।


शेष महेश गणेश दिनेश सुरेश हि जाहि निरंतर गावे।


(२) यमक अलंकार


जहां एक शब्द या शब्द समूह एक से अधिक बार आए किंतु उनका अर्थ हर बार भिन्न हो, वहां यमक अलंकार होता है।


"तीन बेर खाती थी, वो तीन बेर खाती है।"


उपरोक्त उदाहरण के पहले अंश में दिन में तीन बार खाने की बात कही गई है, वहीं दूसरे अंश में मात्र तीन फल खाने की बात कही गई है। अतः यहां यमक अलंकार है।


काली घटा का घमंड घटा।


माला फेरत जुग गया, मिटा न मन का फेर। 

कर का मनका डारि दै, मन का मनका फेर।।


कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। 

या खाए बौराय जग,  वा पाए बौराय।।


(३) श्लेष अलंकार


जहां एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलते हों, वहां श्लेष अलंकार होता है।


रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।


यहां पानी तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। मोती के लिए उसकी चमक, मनुष्य के लिए उसका सम्मान तथा चून के लिए जल के रूप में पानी का प्रयोग हुआ है।


जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय।

बारै उजियारो करै, बढे अंधेरो होय।।


सुबरन को ढूंढत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।



अर्थालंकार


जब काव्य में चमत्कार शब्द के द्वारा न होकर अर्थ के द्वारा उत्पन्न होता है, तो वहां अर्थालंकार होता है।


(४) उपमा अलंकार


समान गुण के आधार पर जहां एक वस्तु की तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहां उपमा अलंकार होता है।


उपमा के चार अंग होते हैं

उपमेय - जिसकी तुलना की जाती है।

उपमान - जिससे तुलना की जाती है।

साधारण धर्म - जिस गुण के कारण तुलना की जाती है।

वाचक शब्द - जिस शब्द के द्वारा तुलना की जाती है।


"पीपर पात सरिस मन डोला।"

मन - उपमेय 

पीपर पात - उपमान 

डोला - साधारण धर्म 

सरिस - वाचक शब्द


नील गगन-सा शांत हृदय था हो रहा।


कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा।


आरसी-से अंबर में आभा-सी उज्यारी लागै।


(५) रूपक अलंकार


जब उपमेय पर उपमान का आरोप हो जाता है अर्थात उपमेय और उपमान में भेद मिट जाता है, तो वहां रूपक अलंकार होता है।


"एक राम-घनश्याम हित चातक तुलसीदास।"


यहां राम की तुलना घनश्याम से न करते हुए राम को ही घनश्याम कहा गया है, अर्थात राम रूपी घनश्याम। 


चरण-कमल बंदौं हरिराई।


मैया, मैं तो चंद्र-खिलौना लैहों।


बंदौं गुरुपद-पदुम परागा।


(६) उत्प्रेक्षा अलंकार


जहां उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त की जाती है, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

इसमें जनु, मनु, मानो, जानो जैसे वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।


पाहुन ज्यों आए हों गांव में शहर के।

मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।।


सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात। 

मनो नीलमणि सैल पर, आतप पर््यो प्रभात।।


उसका मुख मानो चंद्रमा है।



(७) अतिशयोक्ति अलंकार


जहां किसी बात का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है, वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है।


हनुमान की पूंछ में, लग न पाई आग। 

लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग।


देख लो साकेत नगरी है यही। 

स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।।


(८) मानवीकरण अलंकार


जहां मानवेत्तर जगत एवं उसके भावों का वर्णन मानव के रूप में किया जाता है, वहां मानवीकरण अलंकार होता है।


मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।


दिवसावसान का समय, 

मेघमय आसमान से उतर रही है, 

वह संध्या सुंदरी परी-सी, धीरे-धीरे-धीरे।


बीती विभावरी जाग री। 

अंबर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट उषा नागरी।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

2025 की बोर्ड परीक्षा के लिए योजना

 2025 में होने वाली कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा के लिए सुनियोजित योजना बनाकर तैयारी करें, आपको सफलता अवश्य मिलेगी। हिंदी में अधिकाधिक अंक प...