कविता का संदर्भ:
'बात सीधी थी पर' कविता कुंवर नारायण के काव्य संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' में संकलित है। यह कविता भाषा की जटिलता और उसके कारण भावों के संप्रेषण में आने वाली बाधाओं को रेखांकित करती है। कवि यह बताना चाहते हैं कि कभी-कभी हम अपनी बात को प्रभावी बनाने के चक्कर में अनावश्यक रूप से भाषा को जटिल बना देते हैं, जिससे मूल भाव ही खो जाता है।
कविता की विस्तृत व्याख्या:
बात सीधी थी पर एक बार भाषा के चक्कर में ज़रा टेढ़ी फंस गई।
कवि कहता है कि वह एक सीधी-सादी बात कहना चाहता था, लेकिन भाषा के अनावश्यक फेरबदल और शब्दों के जाल में फँसकर वह बात उलझ गई। भाषा को अलंकृत और प्रभावी बनाने के प्रयास में मूल बात की सरलता नष्ट हो गई।
उसे पाने की कोशिश में भाषा को उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा, घुमाया-फिराया कि बात या तो बने या फिर भाषा से बाहर आए।
जब बात उलझ गई, तो कवि ने उसे फिर से सीधी करने की कोशिश की। उसने भाषा के साथ अनेक प्रयोग किए – शब्दों को बदला, वाक्यों को तोड़ा-मरोड़ा, उन्हें नए-नए तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उसका उद्देश्य था कि या तो बात सही ढंग से अभिव्यक्त हो जाए या फिर वह भाषा के बंधन से मुक्त होकर अपनी स्वाभाविक सरलता को प्राप्त कर ले।
लेकिन इससे बात और भी पेचीदा होती चली गई।
कवि के इन प्रयासों से बात और भी अधिक उलझती चली गई। भाषा के साथ खिलवाड़ करने से बात स्पष्ट होने की बजाय और भी अस्पष्ट और कठिन हो गई।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना मैं पेंच को खोलने की बजाय उसे कसता चला जा रहा था।
कवि अपनी गलती स्वीकार करता है कि उसने समस्या को धैर्यपूर्वक नहीं समझा। उसने बात को सरल बनाने की बजाय उसे और अधिक उलझा दिया, ठीक वैसे ही जैसे किसी पेंच को ढीला करने के बजाय उसे और कस दिया जाए। इसका अर्थ है कि कवि ने भाषा को सरल बनाने की बजाय, उसे और अधिक कठिन और जटिल बना दिया।
क्योंकि इस कर्तव्य पर मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी तमाशबीनों की शाबाशी और वाह-वाह।
कवि बताता है कि वह अपनी बात को उलझाता चला गया क्योंकि उसे सुनने वाले लोगों, अर्थात 'तमाशबीनों' की 'शाबाशी और वाह-वाह' सुनाई दे रही थी। इसका अर्थ है कि लोग उसकी जटिल भाषा को सुनकर प्रभावित हो रहे थे और उसे प्रशंसा मिल रही थी। यह प्रशंसा कवि को अपनी गलती का एहसास नहीं होने दे रही थी।
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था - ज़ोर-ज़बरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
अंततः वही हुआ जिसका कवि को डर था। भाषा के साथ अत्यधिक ज़ोर-ज़बरदस्ती करने से बात का मूल अर्थ, उसकी प्रभावशीलता नष्ट हो गई। जैसे किसी पेंच की चूड़ी मर जाने पर वह किसी काम का नहीं रहता, वैसे ही अत्यधिक जटिल भाषा में बात का मूल सार समाप्त हो गया और वह केवल दिखावे के लिए रह गई। बात अपना स्वाभाविक रूप और शक्ति खो बैठी।
हार कर मैंने उसे कील की तरह उसी जगह ठोक दिया।
जब बात की चूड़ी मर गई, तो कवि ने उसे सुधारने की आशा छोड़ दी। उसने उस बात को, उसके मूल स्वरूप को, एक कील की तरह उसी जगह ठोक दिया, यानी उसने उसे जैसे-तैसे पूरा कर दिया। यह इस बात का प्रतीक है कि जब बात अपना अर्थ खो देती है, तो उसे केवल किसी तरह से समाप्त कर दिया जाता है।
ऊपर से ठीक-ठाक पर भीतर से उसमें न कसक थी न ताकत।
बाहर से तो बात पूरी हो गई और ठीक लग रही थी, लेकिन भीतर से उसमें न तो कोई पीड़ा थी (जो मूल बात में होनी चाहिए थी), और न ही कोई शक्ति या प्रभाव था। वह एक अर्थहीन और निष्प्राण बात बनकर रह गई थी।
बात ने जो एक शरारती बच्चे की तरह मुझसे खेल रही थी, मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा - "क्या तुमने भाषा को सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?"
कविता के अंत में, बात को एक शरारती बच्चे के रूप में मानवीकृत किया गया है। वह कवि से पूछती है कि क्या उसने कभी भाषा को सरलता और सहजता से प्रयोग करना नहीं सीखा। यह कवि के लिए एक गहरा प्रश्न है, जो भाषा के सही प्रयोग पर बल देता है। कवि को यह एहसास होता है कि उसने भाषा का दुरुपयोग किया है।
कविता का केंद्रीय भाव:
यह कविता इस बात पर जोर देती है कि भाषा का प्रयोग सरल, सहज और सटीक होना चाहिए। हमें अपनी बात कहने के लिए अनावश्यक रूप से भाषा को जटिल नहीं बनाना चाहिए। जटिल भाषा अक्सर मूल बात को खो देती है और उसके प्रभाव को कम कर देती है। कवि भाषा और संवेदना के द्वंद्व को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि सही बात के लिए सही भाषा का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सीबीएसई में पूछे जाने वाले संभावित प्रश्नोत्तर:
लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक):
कवि अपनी बात कहने में क्यों असफल रहा?
उत्तर: कवि अपनी बात कहने में इसलिए असफल रहा क्योंकि उसने सीधी-सादी बात को प्रभावी बनाने के चक्कर में भाषा को अनावश्यक रूप से जटिल बना दिया। उसने शब्दों के जाल और भाषाई अलंकरण में फंसकर मूल बात की सरलता को खो दिया।
"बात की चूड़ी मर गई और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।" - पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति का आशय है कि जब कवि ने भाषा के साथ अत्यधिक ज़ोर-ज़बरदस्ती की, तो बात का मूल अर्थ, उसकी प्रभावशीलता और संवेदनशीलता नष्ट हो गई। जैसे किसी पेंच की चूड़ी मर जाने पर वह किसी काम का नहीं रहता, वैसे ही अत्यधिक जटिल भाषा में बात का मूल सार समाप्त हो गया और वह केवल दिखावे के लिए रह गई, अपना स्वाभाविक रूप और शक्ति खो बैठी।
'तमाशबीनों की शाबाशी' का कवि पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: 'तमाशबीनों की शाबाशी' ने कवि को अपनी गलती का एहसास नहीं होने दिया। जब वह भाषा को उलझा रहा था और उसे जटिल बना रहा था, तब लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे। इस झूठी प्रशंसा के कारण कवि अपनी बात को सरल बनाने की बजाय उसे और अधिक उलझाता चला गया।
कविता के अंत में बात का मानवीकरण किस रूप में किया गया है? इससे क्या संदेश मिलता है?
उत्तर: कविता के अंत में बात का मानवीकरण एक शरारती बच्चे के रूप में किया गया है। इससे यह संदेश मिलता है कि भाषा को सहजता और सरलता से प्रयोग करना चाहिए। बात स्वयं कवि को उसके भाषाई दुरुपयोग का एहसास कराती है और उसे सीख देती है कि उसने भाषा को सहजता से प्रयोग करना नहीं सीखा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (3 अंक):
'बात सीधी थी पर' कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 'बात सीधी थी पर' कविता का प्रतिपाद्य यह है कि भाषा का प्रयोग सरल, सहज और सटीक होना चाहिए। कवि यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपनी बात कहने के लिए अनावश्यक रूप से भाषा को जटिल या अलंकृत नहीं बनाना चाहिए। जटिल भाषा अक्सर मूल बात को खो देती है और उसके प्रभाव को कम कर देती है। कविता भाषा और संवेदना के द्वंद्व को प्रस्तुत करती है, जहाँ सही बात के लिए सही भाषा का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कवि यह भी दिखाता है कि कभी-कभी झूठी प्रशंसा हमें अपनी गलतियों का एहसास नहीं होने देती और हम अपनी राह से भटक जाते हैं।
कवि ने बात और पेंच के बिंब का प्रयोग किस प्रकार किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवि ने कविता में बात और पेंच के बिंब का अत्यंत प्रभावी प्रयोग किया है। जब बात उलझ जाती है, तो कवि उसे सुधारने की कोशिश करता है, ठीक वैसे ही जैसे एक पेंच को कसने या ढीला करने की कोशिश की जाती है। कवि कहता है कि उसने 'पेंच को खोलने की बजाय उसे कसता चला जा रहा था', जिसका अर्थ है कि वह बात को सरल बनाने की बजाय उसे और अधिक जटिल बना रहा था। फिर, जब बात का मूल अर्थ नष्ट हो जाता है, तो कवि कहता है कि 'बात की चूड़ी मर गई और वह भाषा में बेकार घूमने लगी', ठीक वैसे ही जैसे एक पेंच की चूड़ी मर जाने पर वह किसी काम का नहीं रहता। अंत में, कवि हार मानकर 'उसे कील की तरह उसी जगह ठोक देता है', जो इस बात का प्रतीक है कि जब बात अपना अर्थ खो देती है, तो उसे केवल किसी तरह से समाप्त कर दिया जाता है। ये बिंब भाषा के अनावश्यक जटिलता के कारण मूल भाव के नष्ट होने की प्रक्रिया को अत्यंत सजीवता से प्रस्तुत करते हैं।
'बात सीधी थी पर' कविता में भाषा की सहजता पर बल दिया गया है। अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए कि भाषा की सहजता क्यों आवश्यक है।
उत्तर: 'बात सीधी थी पर' कविता भाषा की सहजता पर अत्यधिक बल देती है। भाषा की सहजता इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह संप्रेषण का मूल आधार है। जब हम अपनी बात को सरल और सहज भाषा में व्यक्त करते हैं, तो वह आसानी से समझी जाती है और उसका प्रभाव सीधा पड़ता है। जटिल या अनावश्यक रूप से अलंकृत भाषा अक्सर श्रोता या पाठक को भ्रमित करती है और मूल संदेश को धूमिल कर देती है। सहज भाषा विचारों को स्पष्टता और ईमानदारी से प्रस्तुत करती है। यह बनावटीपन से दूर होती है और भावनात्मक जुड़ाव स्थापित करती है। कविता में कवि के साथ यही होता है, जब वह अपनी सीधी बात को जटिल बनाने के चक्कर में उसकी आत्मा ही खो देता है। इसलिए, अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने के लिए भाषा की सहजता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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