Introduction: The Magic Behind the Screen
हम सबने कभी न कभी किसी फ़िल्म को देखकर यह महसूस किया है कि हम कहानी में पूरी तरह डूब गए हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि परदे पर दिखने वाले इस जादू के पीछे एक विस्तृत और सख़्त नियमों वाला दस्तावेज़ होता है, जिसे 'पटकथा' कहते हैं? क्या आपने कभी सोचा है कि उस ब्लूप्रिंट में कहानी के कौन-से रहस्य छिपे होते हैं?
1. नाटक और फ़िल्म सिर्फ़ माध्यम नहीं, समय और स्थान की दो अलग दुनियाएँ हैं
अक्सर लोग फ़िल्म को नाटक का ही एक तकनीकी रूप मान लेते हैं, लेकिन यह सबसे बड़ी गलतफहमी है। नाटक एक 'सजीव कला माध्यम' (live art form) है, जो एक ही समय में, एक ही स्थान पर, जीवंत दर्शकों के सामने घटित होता है। वहीं, फ़िल्म 'पूर्व-रिकॉर्डेड छवियाँ एवं ध्वनियाँ' (pre-recorded images and sounds) होती है, जो उसे समय और स्थान के बंधन से आज़ाद कर देती है।
इस बुनियादी फ़र्क से दो बड़े अंतर पैदा होते हैं:
- दृश्य की लंबाई: नाटक के दृश्य आमतौर पर लंबे होते हैं, जबकि फ़िल्मों में कई छोटे-छोटे दृश्य होते हैं।
- घटना स्थल (Locations): नाटक कुछ सीमित स्थानों में ही सिमटा होता है, जबकि फ़िल्म में अनगिनत लोकेशंस हो सकती हैं, और हर नया दृश्य एक नए स्थान पर फ़िल्माया जा सकता है।
यह सिर्फ़ तकनीक का अंतर नहीं है, बल्कि यह कहानी कहने के तरीक़े का मौलिक अंतर है। फ़िल्म अपनी इसी आज़ादी के कारण दर्शक को सिर्फ़ स्थान के पार ही नहीं, बल्कि समय के पार भी ले जाती है। जहाँ नाटक की कहानी का विकास ज़्यादातर एक-रेखीय (linear) होता है, वहीं फ़िल्में फ़्लैशबैक (Flashback) और फ़्लैश फॉरवर्ड (Flash Forward) जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करके समय को तोड़-मरोड़ सकती हैं और वास्तविकता का एक नया भ्रम रचती हैं।
2. हर एक 'दृश्य' का आधार है एक मज़बूत तिकड़ी: स्थान, समय और कार्य
पटकथा की सबसे बुनियादी और महत्वपूर्ण इकाई 'दृश्य' (Scene) होती है। हर एक दृश्य तीन स्तंभों पर टिका होता है: एक ही स्थान, एक ही समय, और लगातार चल रहा एक कार्य-व्यापार (action)।
पटकथा लेखन का सबसे कठोर नियम यही है: अगर इन तीनों में से कोई एक भी चीज़ बदलती है, तो दृश्य तुरंत बदल जाता है और उसे एक नई दृश्य-संख्या दी जाती है। उदाहरण के लिए, जैसा कि पाठ्य-पुस्तक में बताया गया है, अगर पहले दृश्य में पात्र रजनी और लीला बेन बातें करते-करते रसोईघर में चले जाते हैं, तो स्थान बदलते ही एक नया दृश्य शुरू हो जाएगा, भले ही समय और कार्य निरंतर चल रहा हो। यह नियम निर्देशक से लेकर पूरी फ़िल्म यूनिट को एक स्पष्ट और तार्किक ढाँचा देता है, जिससे कहानी का प्रवाह बना रहता है।
3. पटकथा की एक गुप्त भाषा होती है जो सिर्फ़ अभिनेताओं के लिए नहीं होती
पटकथा सिर्फ़ संवादों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक तकनीकी दस्तावेज़ है जिसकी अपनी एक विशेष भाषा होती है। यह भाषा पूरी फ़िल्म यूनिट के लिए होती है। हर दृश्य की शुरुआत में तीन जानकारियाँ देना अनिवार्य होता है:
- घटना स्थल: दृश्य कहाँ हो रहा है (जैसे - पार्क, कमरा)।
- समय: घटना का समय क्या है (जैसे - दिन, रात, सुबह, शाम)।
- अंदर या बाहर: दृश्य किसी बंद जगह (INT. - इंटीरियर) में है या खुली जगह (EXT. - एक्सटीरियर) में।
इन जानकारियों के साथ-साथ 'कट टू' (Cut To) जैसे तकनीकी निर्देश भी होते हैं, जो एक शॉट से दूसरे पर तुरंत जाने का संकेत देते हैं। यह पटकथा की तकनीकी शब्दावली का सिर्फ़ एक उदाहरण है; 'डिजॉल्व टू' (Dissolve To) जैसे कई अन्य निर्देशों का भी प्रयोग होता है। ये निर्देश निर्देशक, तकनीशियन और संपादक को बताते हैं कि कहानी को दृश्यों के माध्यम से कैसे आगे बढ़ाना है। यह साबित करता है कि पटकथा केवल कहानी नहीं, बल्कि फ़िल्म बनाने का एक साझा रोडमैप है।
4. कई बेहतरीन फ़िल्मों की कहानियाँ असल में किताबों से आती हैं
यह जानकर शायद आपको हैरानी न हो, लेकिन फ़िल्मों की कहानी के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक हमेशा से साहित्य रहा है। प्रसिद्ध उपन्यासों और कहानियों पर फ़िल्में बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है।
हिंदी साहित्य के कई महान लेखकों की रचनाओं को समय-समय पर परदे पर उतारा गया है, जिनमें मुंशी प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, धर्मवीर भारती, और मन्नू भंडारी जैसे नाम शामिल हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय का उपन्यास 'देवदास' है, जिसे हिंदी सिनेमा में ही तीन बार फ़िल्माया जा चुका है। यह दिखाता है कि एक मज़बूत साहित्यिक कृति में कालजयी पटकथा बनने की कितनी क्षमता होती है।
5. आज के लेखक अकेले नहीं हैं: कंप्यूटर भी पटकथा लिखने में मदद करता है
आज के डिजिटल युग में पटकथा लेखन की कला भी तकनीक से अछूती नहीं है। अब ऐसे कई कंप्यूटर सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जो पटकथा लेखकों का काम आसान बना देते हैं। ये सॉफ्टवेयर मुख्य रूप से दो तरह से मदद करते हैं:
- इनमें पटकथा का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत प्रारूप पहले से बना होता है, जिससे लेखक को फ़ॉर्मेटिंग की चिंता नहीं करनी पड़ती।
- ये सॉफ्टवेयर पटकथा में होने वाली गलतियों को पहचान सकते हैं और उन्हें सुधारने के लिए सुझाव भी दे सकते हैं।
यह रचनात्मक कला और आधुनिक तकनीक का एक दिलचस्प संगम है, जो दिखाता है कि कहानी कहने के तरीक़े हमेशा विकसित होते रहते हैं। जैसा कि प्रख्यात लेखक मनोहर श्याम जोशी ने कहा है:
पटकथा कुछ और नहीं, कैमरे से फिल्म के परदे पर दिखाए जाने के लिए लिखी हुई कथा है। —मनोहर श्याम जोशी
Conclusion: अब आप फ़िल्मों को एक नई नज़र से देखेंगे
तो यह स्पष्ट है कि एक फ़िल्म सिर्फ़ कहानी और अभिनय का मेल नहीं, बल्कि नियमों, संरचना और बारीक़ तकनीकी निर्देशों पर आधारित एक जटिल कलाकृति है। पटकथा वह अदृश्य धागा है जो इन सभी चीज़ों को एक साथ पिरोता है।
अगली बार जब आप कोई फ़िल्म देखेंगे, तो क्या आप सिर्फ़ कहानी देखेंगे या उसके पीछे की इस बारीक़ कारीगरी को भी पहचान पाएँगे?