प्रश्न: कवि ने "उषा" कविता में प्रातःकालीन आकाश की तुलना किन-किन उपादानों से की है?
उत्तर: कवि ने प्रातःकालीन आकाश की तुलना राख से लीपे हुए चौके, काली सिल, लाल केसर से धुली हुई सिल, और नीले जल में झिलमिलाती हुई गोरी देह से की है। ये सभी उपादान गाँव के घरेलू परिवेश से लिए गए हैं, जो उषा के बदलते रंगों और वातावरण को सजीवता से चित्रित करते हैं।
प्रश्न: 'राख से लीपा हुआ चौका' उपमा में कवि क्या भाव व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर: 'राख से लीपा हुआ चौका' उपमा से कवि प्रातःकाल के वातावरण की पवित्रता, निर्मलता और स्वच्छता का भाव व्यक्त करना चाहता है। यह चौका अभी-अभी लीपा गया है, इसलिए वह नम और साफ़ है, ठीक वैसे ही जैसे सुबह का आकाश धुंधलके के साथ शुद्ध दिखाई देता है। यह गाँव के जीवन की सादगी को भी दर्शाता है।
प्रश्न: कवि ने 'काली सिल' और 'लाल केसर' के माध्यम से उषा का कौन सा रूप चित्रित किया है?
उत्तर: कवि ने 'काली सिल' और 'लाल केसर' के माध्यम से उषा के तीव्रता से बदलते रंग-रूप को चित्रित किया है। जब आकाश में हल्का अंधेरा होता है तो वह 'काली सिल' के समान लगता है। सूर्य की लालिमा फैलने पर वह 'लाल केसर से धुली हुई सिल' जैसा प्रतीत होता है, जिसमें लालिमा और कालापन दोनों का मिश्रण है।
प्रश्न: "बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो" - इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति का भाव है कि प्रातःकाल के गहरे नीले-काले आकाश में जब सूर्य की लालिमा फैलती है, तो ऐसा लगता है मानो किसी काली सिल को थोड़े से लाल केसर से धो दिया गया हो। यह उपमा उषा के उस क्षण को दर्शाती है जब अंधेरा छँट रहा होता है और सूर्य की किरणें अपनी आभा बिखेरना शुरू करती हैं।
प्रश्न: "नीले जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो" - इस पंक्ति में कवि क्या सौंदर्य दिखाता है?
उत्तर: इस पंक्ति में कवि उषा के अंतिम चरण के सौंदर्य को दिखाता है। प्रातःकालीन नीला आकाश ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह गहरा नीला जल हो। उसमें सूर्य की श्वेत-रश्मियाँ इस प्रकार झिलमिलाती हैं मानो किसी गोरे रंग की युवती की देह नीले जल में हिल रही हो। यह दृश्य अत्यंत मोहक और मनोहारी है।
प्रश्न: उषा के जादू टूटने का क्या अर्थ है?
उत्तर: उषा के जादू टूटने का अर्थ है कि सूर्योदय होने पर उषाकाल का अद्भुत और जादुई वातावरण समाप्त हो जाता है। सूर्य के पूरी तरह से क्षितिज पर आ जाने पर आकाश में फैले विविध रंग और धुंधलका लुप्त हो जाते हैं। दिन का स्पष्ट प्रकाश फैल जाता है और उषा का क्षणिक सौंदर्य अपने चरम पर पहुँचकर विलीन हो जाता है।
प्रश्न: कवि ने उषा का मानवीकरण किस प्रकार किया है?
उत्तर: कवि ने उषा का मानवीकरण कई स्थलों पर किया है। 'नीले जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो' पंक्ति में उषा को एक सुंदर युवती के रूप में चित्रित किया गया है जिसकी देह जल में झिलमिला रही है। यह उपमा उषा को जीवंत रूप प्रदान करती है और उसकी सुंदरता को मानवीय भावनाओं से जोड़ती है।
प्रश्न: 'शंख' और 'उषा' के सौंदर्य में क्या संबंध है?
उत्तर: 'शंख' का संबंध प्रातःकाल की पवित्रता और शुभता से है। प्रातःकालीन आकाश का रंग कभी-कभी शंख के समान धवल और पवित्र प्रतीत होता है, जो दिन की शुरुआत का प्रतीक है। कवि ने उषा के शांत, निर्मल और पवित्र सौंदर्य को व्यक्त करने के लिए शंख जैसी उपमा का प्रयोग किया है।
प्रश्न: कविता में ग्रामीण परिवेश का चित्रण किस प्रकार हुआ है?
उत्तर: कविता में ग्रामीण परिवेश का चित्रण अत्यंत सजीवता से हुआ है। कवि ने 'चौके', 'सिल' और 'खड़िया चाक' जैसे घरेलू और ग्रामीण उपादानों का प्रयोग किया है, जो गाँव के सामान्य जीवन से जुड़े हैं। ये प्रतीक ग्रामीण भोर के सहज और प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाते हैं और कविता को एक विशिष्ट भारतीय पहचान देते हैं।
प्रश्न: शमशेर बहादुर सिंह ने "उषा" कविता में किस प्रकार के बिंबों का प्रयोग किया है?
उत्तर: शमशेर बहादुर सिंह ने "उषा" कविता में गतिशील और दृश्य बिंबों का कुशलता से प्रयोग किया है। 'राख से लीपा हुआ चौका', 'काली सिल', 'लाल केसर से धुलना' और 'झिलमिल देह' जैसे बिंबों के माध्यम से कवि ने उषा के पल-पल बदलते रंग-रूप और गतिशील सौंदर्य को साकार किया है। ये बिंब पाठक के मन में एक स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करते हैं।
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